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सोमवार, 7 मार्च 2016

हरारत

1

दिल से उतर रहे हैं
रिश्ते करवट बदल रहे हैं

पेड़ छाल बदलें जो इक बार फिर से
उससे पहले
चलो शहर को धो पोंछ लो

शगुन अच्छा है

दिल की हरारत से
रिश्तों की हरारत तक के सफ़र में
इस बार मुझे नहीं होना नदी .........
 
2
किससे करें अब यहाँ वफ़ा की उम्मीद
सारे शहर में उनकी बेवफाई के चर्चे हैं 


हकीकत की कश्ती में सभी कच्चे हैं
यहाँ सभी बेमानी बेसबब रिश्ते हैं


3
काश ! दिल खोलकर रखा जाता
जिसने जो दर्द दिया उसे दिख जाता 


फिर ज़ख्मों का न यूं बाज़ार लगा होता
दिल की किताब से उसका नाम मिटा होता


 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना " पांच लिंको का आनंद" पर कल रविवार , 13 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी . http://halchalwith5links.blogspot.in आप भी आइएगा

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  2. पेड़ छाल बदलें जो इक बार फिर से
    उससे पहले
    चलो शहर को धो पोंछ लो........waah bahut sundar

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