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गुरुवार, 9 जून 2016

गीताश्री की नज़र से 'अँधेरे का मध्य बिंदु'



एक लेखक के लिए जन्मदिन का इससे प्यारा तोहफा क्या होगा जब उसे उपहार स्वरुप उसकी कृति की समीक्षा मिले ........ जी हाँ , ये तोहफा दिया है हम सबकी जानी मानी सुप्रसिद्ध लेखिका ‪#‎geetashreeगीताश्री‬ ने और सुबह सबसे पहले फ़ोन पर शुभकामना सन्देश भी उन्ही का मिला .........तो प्रस्तुत है गीताश्री जी का गहन समीक्षात्मक दृष्टिकोण , जो सिद्ध करता है कितनी गहनता से उपन्यास का उन्होंने अध्ययन किया और उस पहलू पर उनकी कलम चली जो उपन्यास का मूल है वर्ना कहानी पर तो सभी लिखते हैं :
प्रस्तुत है @geetashreeगीताश्री जी की प्रतिक्रिया उनके मूल शब्दों में जो उन्होंने फेसबुक पर दी :

Geeta Shree
Yesterday at 8:57am ·


"अंधेरे का मध्य बिंदू " की तलाश करते करते ठिठक गई मैं. आखिर लेखक की मंशा क्या है? जिसका जीवन में बहुत विरोध हो, लेखन में उसके पक्ष में खड़ा हो जाने के पीछे कौन सी मंशा काम कर रही थी ! वह विषय ही क्यों चुना, जिसका जीवन में स्वीकार नहीं. बहुत सारे सवालो के जवाब मिलते हैं, जैसे जैसे हम अंधेरी सुरंग में घुसते हैं. हर सुरंग का मुहाना रोशन होता है. विषय चाहे कितना भी नापसंद हो, असली बात तो पक्षधरता की है. लेखक बिना विषय का पक्ष लिए, छीजती हुई मनुष्यता की खोज तो कर ही सकता है. उन अंधेरे बिंदूओं की तरफ संकेतित तो हो ही सकता है. रिश्तों से गुमशुदा प्रेम, विश्वास और स्पेस को तो खोज ही सकता है.
हंसमुख, सहजमना कवि -ब्लॉगर वंदना गुप्ता का पहला उपन्यास मुझे बहुत कुछ सोचने पर विवश कर गया. हम रिश्तो से भाग कर रिश्तों से ही जा उलझते हैं. एक जाल टूटे है तो कई डोर खींचे हैं. विडंबनाएं इच्छाओं के साथ लगी चली आती हैं जो कई बार त्रासद अंत में बदल जाती हैं. मानवीय स्वभाव का सबसे बड़ा संकट ये कि हम सब जानते हुए दलदल की तरफ बड़े आराम से यात्रा करते हैं.
वंदना ने इस उपन्यास में लिव-इन रिश्तों को " डिकोड" किया है. पूरी तरह. प्रभा खेतान की थ्योरी पर यहां लेखिका खड़ी दिखाई देती हैं कि जीवन, रोमांस, सेक्स-संबंध सबके अलग अलग कोड होते हैं ! मैं जरा आगे जाकर मानती हूं कि लेखक उनको डिकोड करता चलता है. वंदना ने इस रिश्तों को " डिकोड" किया है , अपनी निजी असहमतियों के वाबजूद.
इतालो कल्वीनों की तरह कह सकती हूं कि साहित्य हमेशा उन गुप्त अर्थों या अज्ञात जगहों की तलाश करता है जिनके मूल अर्थ बदल देने की कोशिश करता है. वंदना यहां यही करती दिखाई देती है. वह रिश्तों के बेहद जरुरी अवयवों की न सिर्फ तलाश करती है बल्कि उन्हें नए सिरे से परिभाषित भी. यही होती है लेखकीय दृष्टि. जो हिंसा के खिलाफ अहिंसक स्थापनाएं दें.
ऐसा नहीं कि वैवाहिक हिंसा का निदान लिव-इन रिश्ते में है. दोनों विफल संस्थाएं साबित हो रही हैं इस दौर में, जहां जीवन ही संदिग्ध हो गया है.
लेखिका दोनों रिश्तों के खोल उतारती चलती है, चोट करती चलती है और तपती हुई ऊंगली मूल अवयव पर धर देती है. इन दोनों में कुछ चीजें खो गई हैं या घिस गई हैं. उनकी पड़ताल जरुरी. उसकी तलाश की यात्रा है यह उपन्यास जिसमें
प्रेम और भरोसे की उपस्थिति को मूर्त किया गया है और अवचेतन के गहरे अंधेरे में उतर कर वे points ढूंढ लिए गए हैं जहां उजाले बसते हैं.
यही तो है जॉनथन स्वीफ्ट की कलादृष्टि !
"Vision is the art of seeing, what is invisible to others. "
ब्लॉगिंग के जमाने से मेरी मित्र वंदना ने इस बार पुस्तक मेले में मुझे चौंका दिया था. उपन्यास की भनक तक नहीं लगने दी. उपन्यास देखते ही सुखद आश्चर्य से भर गई. हम सोचते रह गए, वंदना ने अंधेरे के मध्य बिंदू को खोज लिया. वाह !! उजाले की तलाश ऐसे ही होती है , बिना ढ़ोल -नगाड़े के.
वंदना का आज जन्म दिन भी है! इससे अच्छा दिन क्या होगा !! बहुत बहुत बधाई वंदना !!

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