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बुधवार, 7 सितंबर 2016

एक प्रतिक्रिया ऐसी भी



जैसे दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम
वैसे ही किताब किताब पर लिखा होता है पढने वाले का नाम

ऐसा ही मेरे उपन्यास अँधेरे का मध्य बिंदु के साथ हुआ जब जन्माष्टमी पर एक फ़ोन आया .

हैलो , क्या मैं वंदना  गुप्ता जी से बात कर सकता हूँ
जी मैं बोल रही हूँ
(थोडा हिचकिचाते हुए) मैं अवधेश बोल रहा हूँ
मैम (फिर से हिचकिचाते हुए बोले) आप की एक बुक मुझे अपनी दोस्त के माध्यम से मिली
कौन सी ?
अँधेरे का मध्य बिंदु
(मैं अलर्ट) जी , किस दोस्त के ?
देखिये, न मैं आपको जानता हूँ न आप मुझे लेकिन मैंने आपकी ये किताब पढ़ी तो मुझे लगा आपसे बात करनी चाहिए .
जी , आपको किस दोस्त से मिली ?
आपने उसे भेंट की थी
किसे ?
जी खनक
खनक नाम की तो मेरी कोई दोस्त नहीं है
आपने आर जे खनक को दी थी
ओह , हाँ , बिग ऍफ़ एम वाली खनक
जी जी , वो ही
तो बताइए आपको कैसी लगी ?
बहुत बढ़िया . आपके इस उपन्यास से मैंने बहुत कुछ सीखा . मैं भी इसी दौर से गुजर रहा हूँ . मुझे ऐसा लगा  रिश्ता कोई भी हो उसे एक स्पेस की जरूरत होती है तभी निभ सकता है . फिर वो लिव इन हो या शादी का .
जी बिल्कुल
जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारा जाए . उस पर अपने आपको थोपा न जाए . फिर  तो रिश्ता ब्रह्माण्ड के अंत तक निभ सकता है . मुझे तो पढ़कर ऐसा ही लगा .
बिल्कुल सही पकडे हैं आप . यही कहने की कोशिश की है जो जैसा है न तो उसे बदलें न उस पर खुद को थोपें तभी रिश्ते निभ सकते हैं ,
जानती हैं , खनक मेरी पत्नी हैं
अरे वाह
और मैं उसे ये किताब कई बार पढ़ते देखता तो पूछता आखिर ऐसा इसमें है क्या ? और फिर जब मैंने इसे पढ़ा तो अपने आपको फ़ोन करने से रोक नहीं पाया
मैं शुक्रगुजार हूँ जो आपने अपनी प्रतिक्रिया दी
मैंने काफी कुछ सीखा इससे . वो जो वकील वाला हिस्सा है उससे भी . वैसे अच्छा नहीं लगता इतनी बात कर लूं लेकिन अपना पूरा परिचय न दूँ
जी बताइए
मैं अवधेश श्रीवास्तव हूँ . आपने सुना हो कभी रेडियो सिटी पर . आर जे अवधेश .
अरे वाह , ये तो बढ़िया है इसी बहाने आप से बात करने का मौका मिला
उपन्यास का जब अंत आता है तो यूं लगा जैसे हम वहीँ बैठे हैं और सुन रहे हैं शीना की कहानी उसकी जुबानी . आँखों के आगे चित्र साकार हो उठा .
ये मेरा सौभाग्य है जो आपको पसंद आया .
वादा तो नहीं करता लेकिन यदि कभी आपको बुलाएं तो आप आ सकेंगी रेडियो सिटी पर ?
जी जरूर
फिर हम इस पर और काफी सारी बात करेंगे
जी मैं खुद चाहती हूँ आज की युवा पीढ़ी जो लिव इन में रह रही है या रहने की सोच रही है उस तक ये बात पहुंचे . अपने जीवन को बर्बाद न करें वो . जैसा कि आजकल पेपर में देखिये तो कहीं अलगाव तो कहीं मर्डर या कहीं आत्महत्या ही हो रही हैं ऐसे संबंधों में .
जी , मैं तो खुद ऐसे रिलेशन में हूँ
यानि आप भी लिव इन में रह रहे हैं
नहीं मैं शादी शुदा हूँ . दस साल हो गए और हमारी अरेंज्ड मैरिज थी . लेकिन इससे मुझे सीखने को मिला कि लिव इन हो या शादीशुदा जीवन सब का अपना अस्तित्व होता है . उसके अस्तित्व को बदले बिना ही उसको स्वीकारना . तभी रिलेशन लम्बे चल सकते हैं .
जी , आपसे एक रिक्वेस्ट है
जी कहिये
आप फेसबुक पर हैं
हाँ
तो वहां ही चाहे हिंदी में चाहे इंग्लिश में अपनी प्रतिक्रिया लिख कर दे सकते हैं तो दे दीजिये . आपकी बात सब तक पहुंचे . क्योंकि आपकी प्रतिक्रिया एक विशुद्ध पाठकीय प्रतिक्रिया है जो मेरे लिए अनमोल है ,
जी जरूर लिखूँगा
शुक्रिया
अच्छा मैम
आपका बहुत वक्त लिया ,बाय
बाय

ये थी बात जो आज जन्माष्टमी पर हुई .अब मैंने सोचा वो जाने कब अपनी प्रतिक्रिया लिख कर दें और जरूरी नहीं दे भी पायें . कहना मेरा फ़र्ज़ बनता था . हर कोई अपनी ज़िन्दगी में बिजी है तो क्यों न मैं ही सारी बातचीत पढवा दूँ और खुद भी सहेज  कर रख लूं क्योंकि ये भी तो प्रतिक्रिया ही है फिर क्या जरूरी हो कि वो लिखित ही हो . मौखिक प्रतिक्रिया का भी अपना महत्त्व है . 

 
और फिर मेरे जैसी नवोदित के लिए तो हर प्रतिक्रिया महत्त्वपूर्ण है जो मेरे लेखन को दिशा देगी क्योंकि एक अंजान पाठक न आपसे न आपके व्यक्तित्व से प्रभावित होता है . वो तो सिर्फ आपके लेखन से प्रभावित होता है और वो ही एक सबसे उत्तम प्रतिक्रिया होती है .

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

पाठक आपके व्यक्तित्व से नहीं लेखन से प्रभावित होता है

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2459 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Pradeep Kumar ने कहा…

Wah ! jaankar achchha lagaa ki aap bhi blog likh rahi hain. main to idhar kai saal baad aayaa. khair dhanywaad

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

ऐसी प्रतिक्रियाएं निश्चित ही मनोबल बढ़ातीं हैं . बधाई उस उपन्यास के लिये .