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शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

"सूरज है वो "

सूरज है वो 
सबसे ज्यादा 
चमकना चाहा
सबके जीवन 
प्राण बनना चाहा
सबसे ऊपर 
उठना चाहा
जो चाहा 
सब मिला
दूसरों  को 
ज़िन्दगी देना
आसान कब होता है 
किसी को 
जीवन देने के लिए 
खुद की आहुति
दी जाती है
हर अभिलाषा को
होम किया जाता है
ताउम्र इक आग में
जलना होता है
तब किसी जीवन में
रौशनी की जाती है
शायद नहीं 
जानता था
इसीलिए
जीवन भर 
जलते रहने का
अभिशाप लिया 
सोचा तो 
इसे वरदान था
मगर बन 
अभिशाप  गया
शायद अब 
जाना होगा
सूरज 
होने का अर्थ 
किसने जहाँ में 
तपन को 
अपनाया है
कौन किसी की 
तपिश में
कब साथ दे पाया है
ये सफ़र तो 
स्वयं के साथ 
ही तय हो पाया है
कोई साथी 
नहीं बनता 
जलने वालों का
जीवन भर
तनहा सफ़र 
तय करते रहना
और जलते रहना
जलने की पीड़ा को
स्वयं में ही
समाहित करना
और फिर भी
 उफ़ ना करना 
अपनी चिता 
स्वयं जलाकर
सबकी ज़िन्दगी 
रोशन करना
शायद इसीलिए
"सूरज है वो "

36 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सूरज का विम्ब लेकर आप बहुत सारी बाते कह रही हैं परोक्ष रूप से.. प्रेम की , जीवन की... अपनों की.... सुंदर कविता ...

राजेश उत्‍साही ने कहा…

सच तो यह है कि जलाने वाले या तपाने वाले न हों तो शीतलता का अहसास नहीं होगा।

SATYA ने कहा…

सुन्दर रचना।

यहाँ भी पधारें :-
No Right Click

बेनामी ने कहा…

जज्बात पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया आपका टिपण्णी का अंदाज़ पसंद आया................अब बात आपकी रचना की ....

"दूसरों को ज़िन्दगी देना आसान कब होता है ?
किसी को जीवन देने के लिए खुद की आहुति दी जाती है,
हर अभिलाषा को होम किया जाता है,
ताउम्र इक आग में जलना होता है,
तब किसी जीवन में रौशनी की जाती है"

बहुत खुबसूरत जज़्बात है ...........इस सुन्दर रचना के लिए
अंग्रेजी में "हैट्स ऑफ"......
हिंदी में " नमन" और
उर्दू में " सलाम" करता हूँ आपको |

साथ ही आपको और आपके प्रियों को "ईद" और "गणेश चतुर्दर्शी" की शुभकामनायें |

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना। बधाई।

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया ओजस रचना ... आभार

कडुवासच ने कहा…

...sundar va prabhaavashaalee rachanaa !!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

suraj hona bilkul aasaan nahin , khud ko jalaker sansaar ko prakashit karta hai...... yun khud se pare kuch aur hona hi aasaan nahin , sabki apni chhawi, apna swaroop, apni khasiyat, apne sandarbh hote hain

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विश्व का गुरुतर भार लिये हुये सूरज।

shikha varshney ने कहा…

कविता गहरे अर्थ लिए है बधाई.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत लाजवाब रचना.

रामराम.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नही किसी से भेद-भाव और वैर कभी रखता है,
सर्व हितैषी रहने की शिक्षा हमको दे जाता है।
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

विज्ञान का बात है कि लोग कहता है कि सूरज पूरा सृष्टि का केंद्र में है... मगर ई जीबन को चलाने के लिए उसको केतना जलना पड़ता है. सच कहा है ई कबिता में एकदम जिन्नगी के तरह.. एक कमाने वाला मजदूरी के आग में जलकर अपने परिवार को पालता है...बहुत सुंदर कबिता..बहुत सुंदर भाव!!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना.

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत, लाजवाब और प्रभावशाली रचना! बधाई!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सूरज के माध्यम से बहुत सटीक और सार्थक बात कही है ...खुद तप कर ही दूसरों को रोशनी दी जा सकती है ...बहुत सुन्दर

उम्मतें ने कहा…

सूरज के कंधे चढ़कर क्या क्या कह डाला आपने :)
सुन्दर अभिव्यक्ति !

Kusum Thakur ने कहा…

"तपन को अपनाया है कौन किसी की तपिश में कब साथ दे पाया है "

सच्चाई यही है ....बहुत ही गहरे भाव ली हुई कविता है !

रानीविशाल ने कहा…

Bahut Sundar

http://anushkajoshi.blogspot.com/

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुन्दर रचना....... बधाई

ओशो रजनीश ने कहा…

गणेशचतुर्थी और ईद की मंगलमय कामनाये !

अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ...


इस पर अपनी राय दे :-
(काबा - मुस्लिम तीर्थ या एक रहस्य ...)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_11.html

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है आपने...और बहुत बाते छुपी है इन पंक्तियों में... सादर नमन

ASHOK BAJAJ ने कहा…

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।

निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सूरज के मार्फ़त बढिया स्न्देश पूर्ण रचना, वन्दना जी!

अंजना ने कहा…

गणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई

Kailash Sharma ने कहा…

कोई साथी नहीं बनता जलने वालों काजीवन भर.... yahi jeevan ki vastavikta hai. Jo apne ko jalane ki kshamta rakhta hai wohi suraj ban sakta hai....bahut hi hradaysparshi abhivyakti.....
http://sharmakailashc.blogspot.com/

Kailash Sharma ने कहा…

कोई साथी नहीं बनता जलने वालों काजीवन भर.... yahi jeevan ki vastavikta hai. Jo apne ko jalane ki kshamta rakhta hai wohi suraj ban sakta hai....bahut hi hradaysparshi abhivyakti.....
http://sharmakailashc.blogspot.com/

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

शायद इसीलिए"सूरज है वो ".......बिलकुल सही कहा आपने.... बहुत सुंदर रचना....

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

vandana ji, aapki kavita ekpurnta liye huye hai jiska ek-ek shabd yatharth ke bilkul kareeb hai.bahut hi achhi lagi aapki yah post .badhai.
poonam

दीपक 'मशाल' ने कहा…

सुन्दर विम्बों को लेके बुनी बढ़िया कविता...

रचना दीक्षित ने कहा…

गहरे अर्थ, बहुत सुंदर भाव, लाजवाब रचना

ASHOK BAJAJ ने कहा…

ग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ .वैसे भी आज पर्युषण पर्व का शुभारम्भ हुआ है ,इस नाते भी पिछले 365 दिनों में जाने-अनजाने में हुई किसी भूल या गलती से यदि आपकी भावना को ठेस पंहुचीं हो तो कृपा-पूर्वक क्षमा करने का कष्ट करेंगें .आभार


क्षमा वीरस्य भूषणं .

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....

मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत संवेदन शील ... सच में खुद को जला कर दूसरों को रोशनी देना आसान नही होता ... अच्छी रचना है ...

रंजना ने कहा…

सत्य कहा...इसलिए तो सूरज है वह !!!

मन को छू गयी आपकी यह रचना भी...