पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

भूख भूख भूख ..............2

2
सबकी अपनी अपनी भूख है
फिर भूख जिस्म की ही क्यों ना हो
वहशीपने की ही क्यों ना हो
आत्मा को कुचलने की ही क्यों ना हो
भूख शांत नहीं होती
जितना बुझाओ उतनी जगती है
और इस ज्वाल को शांत करने के लिये
आज नहीं मिलता उदाहरण रावण से धैर्य का
फिर चाहे रिश्तों की मर्यादा ही क्यों ना लांघी जाये
फिर चाहे अपनों को ही क्यों ना शर्मसार किया जाये
भूख तो आखिर भूख है 
बिना भोजन कैसे शांत हो सकती है
खुराक तो सबके लिये जरूरी है
कौन सोचे मर्यादाओं के उल्लंघन के बारे में
क्या फ़र्क पडता है
सामने नर हो या मादा
सबका अपना ही इरादा
येन केन प्रकारेण भूख को शांत करना
भूख का दानव नहीं देखना चाहता किसी मर्यादा को
फिर चाहे उसके बाद जीवन ही होम हो जाये
क्योंकि
नहीं सिखा पाये भूख को सहना हम 
हमारे आचरण, हमारी नैतिकता 
महज़ कोरा भ्रम भर रहे 
और ढो रही हैं सदियाँ दंश को अनादिकाल से अनादिकाल तक
श्रापित हैं अहिल्या सी पत्थर बनकर जीने को 
फिर चाहे कारण कोई हो
तुलसी के शील भंग का 
चली आ रही परिपाटियों ने खाई को चौडा ही किया है कभी ना भरने के लिये 

क्रमश : ………………

2 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

सही कहा

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

विचारणीय भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
=======================
RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.