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शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

मेरे इश्क की दुल्हन

मेरे इश्क की दुल्हन 
श्रृंगार विहीन होने पर ही सुन्दर लगा करती है 
फिर नज़र के टीके के लिए 
रात की स्याही कौन लगाये 
बस चाँद का फूल ही काफी है 
उसके केशों में सजने को 

जाने क्यों फिर भी 
एक मुट्ठी स्याह रात 
खिसक ही जाती है हाथों से 
और गिर जाती है 
मेरे इश्क की दुल्हन की चूनर पर 
और जल जाता है सारा आस्माँ 

उदास रातों के कहरों की 
डोलियाँ उठाने को 
जरूरी नहीं चार कहारों का होना ही …… 


6 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

shashi purwar ने कहा…

sundar prastuti vandana ji

विभूति" ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति..

Onkar ने कहा…

बहुत खूब

रश्मि शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर

DOT ने कहा…

Thank you sir. Its really nice and I am enjoing to read your blog. I am a regular visitor of your blog.
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