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सोमवार, 31 अगस्त 2015

" ..... के भौंकने से शहर खाली नहीं होते "

" ...... के भौंकने से शहर खाली नहीं होते "
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ओ बगावती हवाओं
स्वीकार नहीं तुम्हारे स्वर
तुम्हारे आकाओं को
कि
सिर झुकाने की रवायतें
गर बदल दी जाएँ
तो कैसे संभव है उनका सिर उठाकर चलना
एकछत्र राज्य के वारिस हैं जो

ये शापित वक्त है
जहाँ फलने फूलने के मौसम
सिर्फ चरण चारण करने वालों को ही नसीब होते हैं

फिर क्यों
जोर आजमाइश किये जाती हो
जाओ , जाओ सो जाओ
फिर उन्ही तबेलों में
जहाँ की आवाज़ नहीं तोडा करती नींदें
सत्ताधारियों की

वर्ना आता है उन्हें प्रयोग करना
कीटनाशकों का भी
और आता है साज के सुरों को बदलना भी
ये त्रासद समय की आग उगलती विभीषिका है
बच सको तो बच लो
आज बगावत भी देश समय और काल देखकर ही करनी चाहिए
विपरीत परिस्थितियों में उपेक्षा लाज़िमी है
क्योंकि
जानते हैं वो हुनर
बगावती हवाओं के रुखों को मोड़ने का भी


क्योकि
सूत्रवाक्य है ये उनकी सत्ता का
जिसका पालन हर ताजपोश करता है

" ..... के भौंकने से शहर खाली नहीं होते "
" राजा आगे आगे चलते हैं .... पीछे भौंका करते हैं "

किसी भी बगावत को कुचलने के लिए काफी है
सिर्फ एक शब्द या एक वाक्य
" कुत्ता "
अर्थ अपने आप अपना स्वरुप ग्रहण करने लगते हैं

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