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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

16 दिसम्बर

16 दिसम्बर हर साल आएगा और चला जाएगा
समय का पंछी एक बार फिर हाथ मल बिलबिलायेगा
मगर इन्साफ न उसे मिल पायेगा

स्त्रियाँ और इन्साफ की हकदार
हरगिज़ नहीं
चलो खदेड़ो इन्हें इसी तरह
कानून की दहलीज पर सिसका सिसकाकर
ताकि कल फिर कोई न दिखा सके ये हिम्मत

ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का
बस सिर्फ स्त्रियों का नहीं

चलो बदल लो इस बार खुदा अपना
सुना है वो बहरा है
जिसकी तुम अराधना करते हो

तारीखें बेशक खुद को दोहरायें
जरूरी नहीं
इन्साफ भी दोहराए जाए
संजय गीता मर्डर जैसे केस
रंगा बिल्ला जैसे अपराधी
और मिल जाए उन्हें सजा भी मनचाही सिर्फ चार साल में
जानते हो क्यों
तुम नहीं हो कोई बड़ी हस्ती या देशभक्त या ब्यूरोक्रेटिक संतान

आम जनता के दुखदर्द के लिए नहीं है ये पुख्ता समय ...

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'