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गुरुवार, 1 जून 2017

ये मेरा इश्क था

देखा है कभी भटकी हुई रूह का मातम
दीवानगी की दुछत्ती पर
जर्रा जर्रा घायल मगर नृत्यरत रहा
एक तेरे लिए
और तू बेखबर

अब कौन गाये सुहाग गीत
बेवाओं के मातम हैं ये
और तुम खुश रहे अपनी मुस्कुराहटों में
ऐसे में
उम्मीद का आखिरी गज़र भी तोड़ दिया

अब सोखने को गंगा जरूरत नहीं किसी जन्हु की
ये मेरा इश्क था
जो मुस्कुराहटें गिरवीं रख ख़रीदा था मैंने

फिरअलविदा कहने  की रस्म का भला क्या औचित्य ?

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